मुखड़ा-दूर क्षितिज में ओझल हो जब,अपने घर सूरज सोता | हिंदी Motivation

"मुखड़ा-दूर क्षितिज में ओझल हो जब,अपने घर सूरज सोता है, रात तभी फिर होती गहरी, पहरा पे चंदा होता है। दूर क्षितिज में ओझल हो जब,अपने घर सूरज सोता है, रात तभी फिर होती गहरी, पहरा पे चंदा होता है। अंतरा-टिमटिम करते तारे नभ में,बन दीपक जैसे जलते हैं, अँधियारा को दूर भगाने,संग- संग चंदा चलते हैं, टिमटिम करते तारे नभ में,बन दीपक जैसे जलते हैं, अँधियारा को दूर भगाने,संग- संग चंदा चलते हैं, हार-जीत ही सोच यहाँ पे, बैठे जो केवल रोता है। टेक-*नहीं निराशा मन जो पाले,वह बीज आस के बोता है!* दूर क्षितिज में ओझल हो जब,अपने घर सूरज सोता है, रात तभी फिर होती गहरी, पहरा पे चंदा होता है। दूसरा अंतरा-छात्र दिवस अरु रात परीक्षा,अपने कर्मों को करते है। डटे यहाँ जो अव्वल आने,प्रश्नों को उसके वरते हैं।। छात्र दिवस अरु रात परीक्षा,अपने कर्मों को करते है। डटे यहाँ जो अव्वल आने,प्रश्नों को उसके वरते हैं।। ©Bharat Bhushan pathak"

 मुखड़ा-दूर क्षितिज में ओझल हो जब,अपने घर सूरज सोता है,
रात तभी फिर होती गहरी, पहरा पे चंदा होता है।
दूर क्षितिज में ओझल हो जब,अपने घर सूरज सोता है,
रात तभी फिर होती गहरी, पहरा पे चंदा होता है।

अंतरा-टिमटिम करते तारे नभ में,बन दीपक जैसे जलते हैं,
           अँधियारा को दूर भगाने,संग- संग चंदा चलते हैं,
           टिमटिम करते तारे नभ में,बन दीपक जैसे जलते हैं,
           अँधियारा को दूर भगाने,संग- संग चंदा चलते हैं,

 हार-जीत ही सोच यहाँ पे, बैठे जो केवल रोता है।
टेक-*नहीं निराशा मन जो पाले,वह बीज आस के बोता है!*

दूर क्षितिज में ओझल हो जब,अपने घर सूरज सोता है,
रात तभी फिर होती गहरी, पहरा पे चंदा होता है।

दूसरा अंतरा-छात्र दिवस अरु रात परीक्षा,अपने कर्मों को करते है।
डटे यहाँ जो अव्वल आने,प्रश्नों को उसके वरते हैं।।
छात्र दिवस अरु रात परीक्षा,अपने कर्मों को करते है।
डटे यहाँ जो अव्वल आने,प्रश्नों को उसके वरते हैं।।

©Bharat Bhushan pathak

मुखड़ा-दूर क्षितिज में ओझल हो जब,अपने घर सूरज सोता है, रात तभी फिर होती गहरी, पहरा पे चंदा होता है। दूर क्षितिज में ओझल हो जब,अपने घर सूरज सोता है, रात तभी फिर होती गहरी, पहरा पे चंदा होता है। अंतरा-टिमटिम करते तारे नभ में,बन दीपक जैसे जलते हैं, अँधियारा को दूर भगाने,संग- संग चंदा चलते हैं, टिमटिम करते तारे नभ में,बन दीपक जैसे जलते हैं, अँधियारा को दूर भगाने,संग- संग चंदा चलते हैं, हार-जीत ही सोच यहाँ पे, बैठे जो केवल रोता है। टेक-*नहीं निराशा मन जो पाले,वह बीज आस के बोता है!* दूर क्षितिज में ओझल हो जब,अपने घर सूरज सोता है, रात तभी फिर होती गहरी, पहरा पे चंदा होता है। दूसरा अंतरा-छात्र दिवस अरु रात परीक्षा,अपने कर्मों को करते है। डटे यहाँ जो अव्वल आने,प्रश्नों को उसके वरते हैं।। छात्र दिवस अरु रात परीक्षा,अपने कर्मों को करते है। डटे यहाँ जो अव्वल आने,प्रश्नों को उसके वरते हैं।। ©Bharat Bhushan pathak

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