प्यार का एहसास
मैं जब भी लिखता हूँ तो बस
तुम्हारा चेहरा लिखता हूँ।
इत्तिफाकन कभी पढ़ो मुझको
तो पता चलेगा तुम्हें,
ज़िक्र ख़ुदा का जहाँ आये तो
तुम्हें ख़ुदा लिखता हूँ।
मेरी शायरी में जहाँ भी
तुम्हारी ख़ामोशी का जिक्र आया,
लोग कहने लगे वहाँ कि
मैं बहुत गहरा लिखता हँ।
माफ कर देना मेरी
गुस्ताखियों को देख कर भी,
मैं अब भी अक्सर
खुद को तुम्हारा लिखता हूँ।
जब-जब भी तबियत मेरी
ज़रा सी बिगड़ जाती है,
मैं तेरी तस्वीर को ही अब
अपनी दावा लिखता हूँ।
💃 शायर Rk…✍🏻
©SHAYAR (RK)
मैं जब भी लिखता हूं…✍️