सत्ताधारी त्रिशूल हैं ! जो जनता की भूल है महं | हिंदी Poetry

"सत्ताधारी त्रिशूल हैं ! जो जनता की भूल है महंगाई, बेरोजगारी और बीमारियों की उड़ रहीं धूल है घर, आँगन और गली के चौराहों पर, मन्दिर ,मस्जिद,मजारो पर, बेईमानों की हूल है !! कहीं आगजनी तो कहीं हो रहा बलात्कार है फिर भी चुप ये सरकार! आमदनी कुछ भी नहीं इसलिए , बिक रहा सरकारी संस्थान है !! जरूरतमंद लोगों को मंदी और मंद लोगों को मिल रही सरकार है!! ©Saurav Azad"

 सत्ताधारी  त्रिशूल  हैं !
जो जनता  की  भूल है 
महंगाई, बेरोजगारी और बीमारियों  की उड़ रहीं धूल है 
घर, आँगन और गली के चौराहों पर, 
मन्दिर ,मस्जिद,मजारो पर, 
बेईमानों  की  हूल है !!
कहीं  आगजनी तो कहीं  हो रहा बलात्कार है 
फिर भी चुप ये सरकार!
आमदनी कुछ भी नहीं इसलिए ,
बिक रहा सरकारी संस्थान है !!
जरूरतमंद लोगों  को मंदी और 
मंद लोगों को मिल रही सरकार है!!

©Saurav Azad

सत्ताधारी त्रिशूल हैं ! जो जनता की भूल है महंगाई, बेरोजगारी और बीमारियों की उड़ रहीं धूल है घर, आँगन और गली के चौराहों पर, मन्दिर ,मस्जिद,मजारो पर, बेईमानों की हूल है !! कहीं आगजनी तो कहीं हो रहा बलात्कार है फिर भी चुप ये सरकार! आमदनी कुछ भी नहीं इसलिए , बिक रहा सरकारी संस्थान है !! जरूरतमंद लोगों को मंदी और मंद लोगों को मिल रही सरकार है!! ©Saurav Azad

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