कर्म बोझ
व्यर्थ ही कर्म बोझ से कभी न घबराइए
देखकर गधे को आप भी सीख लीजिए
दिन रात बोझ जिंदगी का उठाए चलिए
रूखा सूखा जो भी मिले उसे खा लीजिए ।
परहित सेवा भाव से परहेज मत कीजिए
अपनों से ज्यादा सुख दूसरों को दीजिए
आप से है विनती विधाता दुख हर लीजिए
सभी जन निज चित्त में संतोष भर दीजिए ।
©Rakesh Kushwaha Rahi
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