कर्म बोझ व्यर्थ ही कर्म बोझ से कभी न घबराइए देखक | हिंदी कविता

"कर्म बोझ व्यर्थ ही कर्म बोझ से कभी न घबराइए देखकर गधे को आप भी सीख लीजिए दिन रात बोझ  जिंदगी का उठाए चलिए रूखा सूखा जो भी मिले उसे खा लीजिए ।  परहित सेवा भाव से परहेज मत कीजिए अपनों से ज्यादा सुख दूसरों को दीजिए आप से है विनती विधाता दुख हर लीजिए सभी जन निज चित्त में संतोष भर दीजिए । ©Rakesh Kushwaha Rahi"

 कर्म बोझ 

व्यर्थ ही कर्म बोझ से कभी न घबराइए
देखकर गधे को आप भी सीख लीजिए 
दिन रात बोझ  जिंदगी का उठाए चलिए
      रूखा सूखा जो भी मिले उसे खा लीजिए ।  

  परहित सेवा भाव से परहेज मत कीजिए 
   अपनों से ज्यादा सुख दूसरों को दीजिए 
    आप से है विनती विधाता दुख हर लीजिए 
       सभी जन निज चित्त में संतोष भर दीजिए ।

©Rakesh Kushwaha Rahi

कर्म बोझ व्यर्थ ही कर्म बोझ से कभी न घबराइए देखकर गधे को आप भी सीख लीजिए दिन रात बोझ  जिंदगी का उठाए चलिए रूखा सूखा जो भी मिले उसे खा लीजिए ।  परहित सेवा भाव से परहेज मत कीजिए अपनों से ज्यादा सुख दूसरों को दीजिए आप से है विनती विधाता दुख हर लीजिए सभी जन निज चित्त में संतोष भर दीजिए । ©Rakesh Kushwaha Rahi

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