हर जान कीमती है वो किस्मत नही ख़ैरियत थी मेरी
जब तुम्हारी इंसानियत ने मुझे पथरीले रास्तो पर गिराया।
सोचा था तुम भी हाल पूंछने जरूर आवोगें
पर केवल गहरे घाव को मरहम तो मेरे अपनो लगाया।
तुम रास्तों से मुकर गयें हमने भी इस दर्द भरी कहानी को अनहोनी ठहराया।
शिकायतें किससे करनी थीं जब तुम्हारी इंसानियत ने
मुझे बेव़जह पथरीले रास्तों पर गिराया।
कान्ता कुमावत
©kanta kumawat
अपनी कलम
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