सब कुछ टूटा मेरे मन के अंदर , बाहर तुम क्या ढूंढ र | हिंदी कविता

"सब कुछ टूटा मेरे मन के अंदर , बाहर तुम क्या ढूंढ रहे हो । आंख नहीं अब लब हंसते हैं , फिर भी ऊंगली चूम रहे हो । ©AnuWrites@बेबाकबातें"

 सब कुछ टूटा मेरे मन के अंदर ,
बाहर तुम क्या ढूंढ रहे हो ।
आंख नहीं अब लब हंसते हैं ,
फिर भी ऊंगली चूम रहे हो ।

©AnuWrites@बेबाकबातें

सब कुछ टूटा मेरे मन के अंदर , बाहर तुम क्या ढूंढ रहे हो । आंख नहीं अब लब हंसते हैं , फिर भी ऊंगली चूम रहे हो । ©AnuWrites@बेबाकबातें

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