कुछ कदम मैने भी चल के देखा है तुम्हारी राहों पे कुछ हद तक है एक जैसी। जो चल कर देखा है मैने तो जाना की क्यों है हम एक जैसे, परछाईयाँ न सही पर तब भी हमसायों की तरह है कही न कही जुड़े है हक्कित के धागों से। दूर रह कर भी अक्सर याद किया करता हूँ उने पलों को जब साथ रहे थे कुछ देर के लिए ही सही। पर रहे हम एक हद तक एक जैसे ही कही न कही तो. अब हम भी कैसे रहें अलग हमे तो रहना है दूर इस समय, और इस जमाने से हों सिर्फ दो और रहे हमेशा सिर्फ हम दो
©SAHIL KUMAR
तेरी मेरी राहें