पढ़ा था मैंने ज़िन्दगी को
कुछ इस तरह
वो बिखर रही थी
और मैं पढ़ता चला गया
ज़िन्दगी घटती जा रही थी
और मैं पन्ने पलटता चला गया
ज़िन्दगी को खबर थी सबकी
पर मैं बेखबर बस खुद में चलता चला गया
ज़िन्दगी ठहरी भी थी जरा से वक़्त को
पर मैं बेवक्त बस जिंदगी को पढ़ता चला गया
ज़िन्दगी ने दी थी दस्तक जगाने को
पर मैं नींद में खोता चला गया
मैंने पढ़ी ज़िन्दगी की किताब कुछ इस तरह
मैं जी रहा था और मैं मरता चला गया
©Magical Words ( rupali yadav)
पढ़ा था मैंने ज़िन्दगी को
कुछ इस तरह
वो बिखर रही थी
और मैं पढ़ता चला गया
ज़िन्दगी घटती जा रही थी
और मैं पन्ने पलटता चला गया