जिन अल्फ़ाज़ो मे जिक्र होता था हमारा,
वो आज किसी ओर की तारीफें बयां करते हैं।
ओर सज जाती हैं महफ़िल तुम्हारी ,महज किसी ओर के होने से,,
जो कहते थे फिकी है महफ़िल, महज हमारे ना होने से। ।
©The Mysterious Poet
जिन अल्फ़ाज़ो मे जिक्र होता था हमारा,
वो आज किसी ओर की तारीफें बयां करते हैं।
ओर सज जाती हैं महफ़िल तुम्हारी ,महज किसी ओर के होने से,,
जो कहते थे फिकी है महफ़िल, महज हमारे ना होने से। ।
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