मैं जानता हूं तुम जिन उम्मीदों के साथ जिन सपनों को | हिंदी कविता

"मैं जानता हूं तुम जिन उम्मीदों के साथ जिन सपनों को संजोए अपने पिता का घर छोड़ आई वो सब तुम्हें नहीं मिला मुझे भी महसूस होता है कभी -कभी तुमको कुछ बेहतर मिलना चाहिए था कभी कभी साथ बैठ जाने से लोग एक दूसरे को समझने लग जाते है पर हम विवाह के मंडप से पूर्व कहीं भी साथ बैठे नहीं इच्छाएं तो अनंत होती है और सब कुछ मिल जाए ये संभव तो नहीं स्वीकार करना ही तो समाधान है समझ जाने से मन का डर खत्म हो जाएगा मैं जानता हूं तुम हमेशा मेरा साथ दोगी हालात कभी भी तुम्हें मुझसे दूर नहीं करेंगे मेरी हर गलतियों को तुम भुला दोगी जब भी उलझूंगा तो तुम मुझे सुलझा दोगी देखो मैं भी स्वार्थी नहीं ज्यादा कुछ वादा तो नहीं करता पर तुम्हें हर खुशी दूं .. इतनी कोशिश जरूर करूंगा बड़ा सा घर या ढेरो नौकर चाकर शायद मुमकिन नहीं मुझसे पर जहां हर कोने में तुम खुद को महसूस कर सको ऐसा एक घरौंदा घर बसा दूंगा तारों की सैर पर निकलना तो मुश्किल है पर मेले के झूले पर तुम्हे सीने से लगा लूंगा मैं जानता हूं जैसा तुमने सोचा होगा वैसा मैं हो तो नहीं पाया पर तुम्हारी खुशी के खातिर खुद को बदलने की कोशिश जरुर करूंगा अभिषेक राजहंस रोसरा, समस्तीपुर २३/०७/२०२३ ©Abhishek Rajhans"

 मैं जानता हूं
तुम जिन उम्मीदों के साथ
जिन सपनों को संजोए 
अपने पिता का घर छोड़ आई 
वो सब तुम्हें नहीं मिला
मुझे भी महसूस होता है कभी -कभी
तुमको कुछ बेहतर मिलना चाहिए था
कभी कभी साथ बैठ जाने से 
लोग एक दूसरे को  समझने लग जाते है
पर हम विवाह के मंडप से पूर्व 
कहीं भी साथ बैठे नहीं
इच्छाएं तो अनंत होती है
और सब कुछ मिल जाए ये  संभव तो  नहीं
स्वीकार करना ही तो समाधान है
समझ जाने से मन का डर खत्म हो जाएगा

मैं जानता हूं
तुम हमेशा मेरा साथ दोगी
हालात कभी भी तुम्हें मुझसे दूर नहीं करेंगे
मेरी हर गलतियों को तुम भुला दोगी
जब भी उलझूंगा तो तुम मुझे सुलझा दोगी
देखो मैं भी स्वार्थी नहीं
ज्यादा कुछ वादा तो नहीं करता
पर तुम्हें हर खुशी दूं  .. 
इतनी कोशिश जरूर करूंगा
बड़ा सा घर या ढेरो नौकर चाकर
शायद मुमकिन नहीं मुझसे
पर जहां  हर कोने में तुम खुद को महसूस कर सको
ऐसा एक घरौंदा घर बसा दूंगा
तारों की सैर पर निकलना तो मुश्किल है
पर मेले के झूले पर तुम्हे सीने से लगा लूंगा
मैं जानता हूं 
जैसा तुमने सोचा होगा 
वैसा मैं हो तो नहीं पाया
पर तुम्हारी खुशी के खातिर
खुद को बदलने की कोशिश जरुर करूंगा

अभिषेक राजहंस
रोसरा, समस्तीपुर 
२३/०७/२०२३

©Abhishek Rajhans

मैं जानता हूं तुम जिन उम्मीदों के साथ जिन सपनों को संजोए अपने पिता का घर छोड़ आई वो सब तुम्हें नहीं मिला मुझे भी महसूस होता है कभी -कभी तुमको कुछ बेहतर मिलना चाहिए था कभी कभी साथ बैठ जाने से लोग एक दूसरे को समझने लग जाते है पर हम विवाह के मंडप से पूर्व कहीं भी साथ बैठे नहीं इच्छाएं तो अनंत होती है और सब कुछ मिल जाए ये संभव तो नहीं स्वीकार करना ही तो समाधान है समझ जाने से मन का डर खत्म हो जाएगा मैं जानता हूं तुम हमेशा मेरा साथ दोगी हालात कभी भी तुम्हें मुझसे दूर नहीं करेंगे मेरी हर गलतियों को तुम भुला दोगी जब भी उलझूंगा तो तुम मुझे सुलझा दोगी देखो मैं भी स्वार्थी नहीं ज्यादा कुछ वादा तो नहीं करता पर तुम्हें हर खुशी दूं .. इतनी कोशिश जरूर करूंगा बड़ा सा घर या ढेरो नौकर चाकर शायद मुमकिन नहीं मुझसे पर जहां हर कोने में तुम खुद को महसूस कर सको ऐसा एक घरौंदा घर बसा दूंगा तारों की सैर पर निकलना तो मुश्किल है पर मेले के झूले पर तुम्हे सीने से लगा लूंगा मैं जानता हूं जैसा तुमने सोचा होगा वैसा मैं हो तो नहीं पाया पर तुम्हारी खुशी के खातिर खुद को बदलने की कोशिश जरुर करूंगा अभिषेक राजहंस रोसरा, समस्तीपुर २३/०७/२०२३ ©Abhishek Rajhans

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