White रिंद जब मैक़दे को जाते हैं पुर-अदब मैक़दे को ज | हिंदी शायरी

"White रिंद जब मैक़दे को जाते हैं पुर-अदब मैक़दे को जाते हैं मेरे ग़म ने ये मुझसे पूछ लिया― आप कब मैक़दे को जाते हैं? जितने भी हैं नए ज़माने के सारे रब मैक़दे को जाते हैं क्या ग़ज़ब है कि बे-अदब हैं जो बा-अदब मैक़दे को जाते हैं जब कोई ख़ास ग़म सताता है लोग तब मैक़दे को जाते हैं उफ़! तेरे ये नशीले तिश्ना लब क्या ये लब मैक़दे को जाते हैं? शह्र में कौन रोए बुत के पास! सब-के-सब मैक़दे को जाते है ©Ghumnam Gautam"

 White रिंद जब मैक़दे को जाते हैं
पुर-अदब मैक़दे को जाते हैं

मेरे ग़म ने ये मुझसे पूछ लिया―
आप कब मैक़दे को जाते हैं?

जितने भी हैं नए ज़माने के
सारे रब मैक़दे को जाते हैं

क्या ग़ज़ब है कि बे-अदब हैं जो
बा-अदब मैक़दे को जाते हैं

जब कोई ख़ास ग़म सताता है
लोग तब मैक़दे को जाते हैं

उफ़! तेरे ये नशीले तिश्ना लब
क्या ये लब मैक़दे को जाते हैं?

शह्र में कौन रोए बुत के पास!
सब-के-सब मैक़दे को जाते है

©Ghumnam Gautam

White रिंद जब मैक़दे को जाते हैं पुर-अदब मैक़दे को जाते हैं मेरे ग़म ने ये मुझसे पूछ लिया― आप कब मैक़दे को जाते हैं? जितने भी हैं नए ज़माने के सारे रब मैक़दे को जाते हैं क्या ग़ज़ब है कि बे-अदब हैं जो बा-अदब मैक़दे को जाते हैं जब कोई ख़ास ग़म सताता है लोग तब मैक़दे को जाते हैं उफ़! तेरे ये नशीले तिश्ना लब क्या ये लब मैक़दे को जाते हैं? शह्र में कौन रोए बुत के पास! सब-के-सब मैक़दे को जाते है ©Ghumnam Gautam

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