मोहलतें चादरों में लपेटकर एक भी न दी मुहब्बत मेरे | हिंदी कविता

"मोहलतें चादरों में लपेटकर एक भी न दी मुहब्बत मेरे नसीब में नहीं, यादें फिर क्यों दिल में दी.. कहते कि इश्क की लिबास तो दिल ही है... अरे उसे पर भी परत दर परत कजली क्यों लगा दी...! ©Dev Rishi"

 मोहलतें चादरों में लपेटकर एक भी न दी 
मुहब्बत मेरे नसीब में नहीं, यादें फिर क्यों दिल में दी..
कहते कि इश्क की लिबास तो  दिल ही है...
अरे उसे पर भी परत दर परत कजली क्यों लगा दी...!

©Dev Rishi

मोहलतें चादरों में लपेटकर एक भी न दी मुहब्बत मेरे नसीब में नहीं, यादें फिर क्यों दिल में दी.. कहते कि इश्क की लिबास तो दिल ही है... अरे उसे पर भी परत दर परत कजली क्यों लगा दी...! ©Dev Rishi

प्रेम कविता

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