दूर से आती आवाज़ें पहचानने से क्या होगा,
तेरा यहाँ कोई हम-नफ़्स-ओ-हबीब-ए-ख़ास नहीं।
ग़ैर की महफिलों में खुश रहने की कोशिशें तमाम कर,
इश्क़ की तन्हाईयाँ छोडेंगी कभी तेरा साथ नहीं।
जिसकी उम्मीद-ए-आमद में है तेरी आँखों में चमक
तेरे सबब-ए-ग़म से उसे कोई वास्ता ही नहीं।
साया फ़कत उजालों में होगा तेरा शरीक-ए-सफर,
शब-ए-ग़म में उसे भी है तेरा साथ गवारा नहीं।
तू दरिया-ए-ना-पैदा का क़तरा-ए-ग़म-गश्ता है,
तेरी तक़दीर में आगोश-ए-सागर लिखा ही नहीं।
हम-नफ़्स-ओ-हबीब-ए-ख़ास ( करीब और खास दोस्त )
उम्मीद-ए-आमद ( आने की उम्मीद )
सबब-ए-ग़म ( दु: ख का कारण )
शरीक-ए-सफर ( दु: ख में भागीदार )
शब-ए-ग़म ( दु: ख की रात )
दरिया-ए-ना-पैदा ( नदी जो अजन्मे है; ग़ायब है )
क़तरा-ए-ग़म-गश्ता ( खोई बूंद )
आगोश-ए-सागर ( सागर के गले )
©Sameer Kaul 'Sagar'
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