काली कुर्ती पहन जो तुम सज संवर के आई हो, ये बत | हिंदी Poetry

"  काली कुर्ती पहन जो तुम सज संवर के आई हो, ये बताओ मन मोह लेने की कला तुम कहाँ से लाई हों, माथे पें लगीं बिंदी ने भी तुम्हारे श्रंगार की खूब शोभा बढ़ाई हैं, डूबने ही लगा था जो आँखों में तुम्हारी, क्यूँ तुमने पर्स से निकाल ऐनक लगाई हैं, और ये जुल्फे, जो बार बार तुम इन्हें चेहरे से हटाती हो, अरे थोड़ा तो रहम करो इस दिल पे, क्या पहली मुलाकात में ही जान लेना चाहती हों ©Aashu Baliyan"

  

काली कुर्ती पहन जो तुम सज संवर के आई हो,

ये बताओ मन मोह लेने की कला तुम कहाँ से लाई हों,

माथे पें लगीं बिंदी ने भी तुम्हारे श्रंगार की खूब शोभा बढ़ाई हैं,

डूबने ही लगा था जो आँखों में तुम्हारी,

क्यूँ तुमने पर्स से निकाल ऐनक लगाई हैं,

और ये जुल्फे,

जो बार बार तुम इन्हें चेहरे से हटाती हो,

अरे थोड़ा तो रहम करो इस दिल पे,

क्या पहली मुलाकात में ही जान लेना चाहती हों

©Aashu Baliyan

  काली कुर्ती पहन जो तुम सज संवर के आई हो, ये बताओ मन मोह लेने की कला तुम कहाँ से लाई हों, माथे पें लगीं बिंदी ने भी तुम्हारे श्रंगार की खूब शोभा बढ़ाई हैं, डूबने ही लगा था जो आँखों में तुम्हारी, क्यूँ तुमने पर्स से निकाल ऐनक लगाई हैं, और ये जुल्फे, जो बार बार तुम इन्हें चेहरे से हटाती हो, अरे थोड़ा तो रहम करो इस दिल पे, क्या पहली मुलाकात में ही जान लेना चाहती हों ©Aashu Baliyan

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