बड़ी जोर उठी थी उम्मीदें और दरवाजे से लौट गई उम्मीद

"बड़ी जोर उठी थी उम्मीदें और दरवाजे से लौट गई उम्मीदें हमीं ने सुकून खोया रातों को हमीं ने गिनी नहीं घड़ियां एक आग लगायी थी बस्ती ने चरागों को रोशनी के बास्ते अजब आग में जली है बस्ती की बेचारी ये दुनियाँ किस ख़्वाब से कोई देखे ख़्वाब कि ख़्वाब को जगह ही नहीं और ख़्वाब पर ख़्वाब दिखाती है दुनियाँ हमें यकी हो रहा है धीरे- धीरे कहीं डूब न जाए ये दुनियाँ भूखे पेट न लगाए जाते है नारें न बजायी जाती है तालियाँ पेपर लीक पर दे रहे है बड़ी- बड़ी दलीलें लोग चारों तरफ से उठायी जा रही है अनेकों बोलियां ©ABHISHEK YADAV"

 बड़ी जोर उठी थी उम्मीदें और दरवाजे से लौट गई उम्मीदें
हमीं ने सुकून खोया रातों को हमीं ने गिनी नहीं घड़ियां

एक आग लगायी थी बस्ती ने चरागों को रोशनी के बास्ते
अजब आग में जली है बस्ती की बेचारी ये दुनियाँ

किस ख़्वाब से कोई देखे ख़्वाब कि ख़्वाब को जगह ही नहीं
और ख़्वाब पर ख़्वाब दिखाती है दुनियाँ

हमें यकी हो रहा है धीरे- धीरे कहीं डूब न जाए ये दुनियाँ
भूखे पेट न लगाए जाते है नारें न बजायी जाती है तालियाँ

पेपर लीक पर दे रहे है बड़ी- बड़ी दलीलें लोग
चारों तरफ से उठायी जा रही है अनेकों बोलियां

©ABHISHEK YADAV

बड़ी जोर उठी थी उम्मीदें और दरवाजे से लौट गई उम्मीदें हमीं ने सुकून खोया रातों को हमीं ने गिनी नहीं घड़ियां एक आग लगायी थी बस्ती ने चरागों को रोशनी के बास्ते अजब आग में जली है बस्ती की बेचारी ये दुनियाँ किस ख़्वाब से कोई देखे ख़्वाब कि ख़्वाब को जगह ही नहीं और ख़्वाब पर ख़्वाब दिखाती है दुनियाँ हमें यकी हो रहा है धीरे- धीरे कहीं डूब न जाए ये दुनियाँ भूखे पेट न लगाए जाते है नारें न बजायी जाती है तालियाँ पेपर लीक पर दे रहे है बड़ी- बड़ी दलीलें लोग चारों तरफ से उठायी जा रही है अनेकों बोलियां ©ABHISHEK YADAV

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