"तमन्नाओ के झूठे शहर में ।
दिल इक ठिकाना ढूंढता है ।।
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फिर गुजरती हुई उम्र में ।
इक आशियाना ढूढंता है ।।
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थकी थकी सी जिंदगी में ।
सूकून का बहाना ढूढंता है।।
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ठहरे है जो बरसों से लबों में।
गुनगुनाने को वही तराना ढूंढता है। ।
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रो ले जी भर कर आज "माधुरी"।
सागर भी तेरा मुहाना ढूंढता है ।।
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माधवी भटनागर श्रीवास्तव नागपुर
©Madhavi Bhatnagar shrivasta"