भीड़ में भी अकेले हैं, कोई नहीं जो समझे हमें, अपनी | हिंदी शायरी

"भीड़ में भी अकेले हैं, कोई नहीं जो समझे हमें, अपनी ही खामोशियों में ढूंढते हैं सुकून हम। ज़ख्म दिखते नहीं, पर दर्द से कराहते हैं हम, रातों को चुपके-चुपके तकिये को भीगाते हैं हम। कभी-कभी लगता है जैसे टूट जाएँगे हम, पर फिर भी मुस्कुराकर कहते हैं, "सब ठीक है कर देंगे हम" आँखों में पानी है, पर होंठों पे मुस्कान रखते हैं, मर्द हैं हम, इसलिए दर्द को दिल में छुपा लेते हैं। ©RAJ KP"

 भीड़ में भी अकेले हैं, कोई नहीं जो समझे हमें, अपनी ही खामोशियों में ढूंढते हैं सुकून हम।

ज़ख्म दिखते नहीं, पर दर्द से कराहते हैं हम, रातों को चुपके-चुपके तकिये को भीगाते हैं हम।

कभी-कभी लगता है जैसे टूट जाएँगे हम, पर फिर भी मुस्कुराकर कहते हैं, "सब ठीक है कर देंगे हम"

आँखों में पानी है, पर होंठों पे मुस्कान रखते हैं, मर्द हैं हम, इसलिए दर्द को दिल में छुपा लेते हैं।

©RAJ KP

भीड़ में भी अकेले हैं, कोई नहीं जो समझे हमें, अपनी ही खामोशियों में ढूंढते हैं सुकून हम। ज़ख्म दिखते नहीं, पर दर्द से कराहते हैं हम, रातों को चुपके-चुपके तकिये को भीगाते हैं हम। कभी-कभी लगता है जैसे टूट जाएँगे हम, पर फिर भी मुस्कुराकर कहते हैं, "सब ठीक है कर देंगे हम" आँखों में पानी है, पर होंठों पे मुस्कान रखते हैं, मर्द हैं हम, इसलिए दर्द को दिल में छुपा लेते हैं। ©RAJ KP

भीड़ में भी अकेले हैं, कोई नहीं जो समझे हमें, अपनी ही खामोशियों में ढूंढते हैं सुकून हम।

ज़ख्म दिखते नहीं, पर दर्द से कराहते हैं हम, रातों को चुपके-चुपके तकिये को भीगाते हैं हम।

कभी-कभी लगता है जैसे टूट जाएँगे हम, पर फिर भी मुस्कुराकर कहते हैं, "सब ठीक है कर देंगे हम"

#Men #Man

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