हर इक दिन भाफ रहा,हर रूह यहां है कांप रहा।
ये कैसी दरिंदगी है साहब, मैं दिल ही दिल में माप रहा।
कोरोना का है शोर मचा, नंगे पांव मजदूर चला।
जिन्के टुकरों पे तुम पलते, उन्हीं को भुखे मार रहा।
तुम सत्ता में मंगरू रहा,देश त्राहि-त्राहि खाने को मजबूर रहा।
ये कैसी दरिंदगी है साहब, मैं दिल ही दिल में माप रहा।
#Dil