ग़ज़ल बेबसीं मुझे इतना अंदर छोड़े आयी जैसे रास्तों

"ग़ज़ल बेबसीं मुझे इतना अंदर छोड़े आयी जैसे रास्तों को उदासी मोड़े आयीं . एक जंगल रोता हैं खलवत में यूँ जब उसको मेरी मायूसी तब ओड़े आयीं . ये जो लड़की इश्क़ वाली, वफ़ा वाली देखो कुम्हलायें फूल जो तोड़े आयी . फिर न जानें यादों की तारीकियों में रुसवा समंदर को जो जोड़े आयी -शेखऱ"

 ग़ज़ल 

बेबसीं मुझे इतना अंदर छोड़े आयी
जैसे रास्तों को उदासी मोड़े आयीं
.
एक जंगल रोता हैं खलवत में यूँ जब
उसको मेरी मायूसी तब ओड़े आयीं
.
ये जो लड़की इश्क़ वाली, वफ़ा वाली
देखो कुम्हलायें फूल जो तोड़े आयी 
.
फिर न जानें यादों की तारीकियों में
रुसवा समंदर को जो जोड़े आयी 

-शेखऱ

ग़ज़ल बेबसीं मुझे इतना अंदर छोड़े आयी जैसे रास्तों को उदासी मोड़े आयीं . एक जंगल रोता हैं खलवत में यूँ जब उसको मेरी मायूसी तब ओड़े आयीं . ये जो लड़की इश्क़ वाली, वफ़ा वाली देखो कुम्हलायें फूल जो तोड़े आयी . फिर न जानें यादों की तारीकियों में रुसवा समंदर को जो जोड़े आयी -शेखऱ

🌺 आकांशा बाईसा

#peace

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