तारे खयाल,ग़ज़ल,शायरी,नज़्म,सुनाने लगा हूँ
अब लफ़्ज़ों में उतरकर,दिल बहलाने लगा हूँ
मैं, दोस्ती अब नहीं करता, हालातों से मगर
जब भी तन्हा होता हूँ, मैं, गुनगुनाने लगा हूँ
निभाई न गई मुझसे, कसमें वादों की ख़्वाहिशें
जलता रहता था बेवजह, अब बुझाने लगा हूँ
मैं, तुझसे, दूर रहकर भी, लाचार न था
बेकदर हो रहा मैं, तेरे पास,आने लगा हूँ
और, तबियत, नाख़ुश है मेरे इस हाल पे
अब मैं खुद को ही, पागल, बुलाने लगा हूँ
ये दुनियाभर की बातें, शायद, फ़िज़ूल ही है
मैं आसमान में तारों सा, टिमटिमाने लगा हूँ
©paras Dlonelystar
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