वाकिफ़ तो रावण भी था अपने अंजाम से मगर, ये उसका नही | हिंदी Shayari

"वाकिफ़ तो रावण भी था अपने अंजाम से मगर, ये उसका नहीं उसकी 'म'ैं का था सफ़र अमर होने का अभिलाषी था रावण, जीते जी नहीं मरने के बाद हो गया अमर"

 वाकिफ़ तो रावण भी था अपने अंजाम से मगर, ये उसका नहीं उसकी 'म'ैं का था सफ़र
अमर होने का अभिलाषी था रावण,
जीते जी नहीं मरने के बाद हो गया अमर

वाकिफ़ तो रावण भी था अपने अंजाम से मगर, ये उसका नहीं उसकी 'म'ैं का था सफ़र अमर होने का अभिलाषी था रावण, जीते जी नहीं मरने के बाद हो गया अमर

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