कुछ इस क़दर वो समाया है मुझमे, जब भी आईना देखता ह | हिंदी शायरी

"कुछ इस क़दर वो समाया है मुझमे, जब भी आईना देखता हूं तो उसका ही अक्स नज़र आता है...! मै जो था, वो मैं हूं नहीं, पता नहीं क्यों...? हर तरफ बस वही शख्स नज़र आता है....! ©Rishabh"

 कुछ इस क़दर वो समाया है मुझमे, 
जब भी आईना देखता हूं तो उसका ही अक्स नज़र आता है...!
मै जो था, वो मैं हूं नहीं,
पता नहीं क्यों...?
हर तरफ बस वही शख्स नज़र आता है....!

©Rishabh

कुछ इस क़दर वो समाया है मुझमे, जब भी आईना देखता हूं तो उसका ही अक्स नज़र आता है...! मै जो था, वो मैं हूं नहीं, पता नहीं क्यों...? हर तरफ बस वही शख्स नज़र आता है....! ©Rishabh

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