गली में वो अब भी अपनी खिड़की से यूँ ही झाँकते होंगे!
जैसे चाँदनी रात में अब भी कोई उन्हें देखने आया।।
वो मिरी ढूंढ़ती निगाहें, वो ताकती नज़र आसमानों को
उसकी छत पर टिमटिमाते सितारों के संग उसे पाया।।
उसने कुछ शोखियाँ दिखाई और कुछ इशारे भी फेंके
मैंने उसे ..बस... देखा, और ...मुस्कुराया.. ।।
वजह क्या थी मेरी उस गली में मेरे बार-2 जाने की
ठोकरें दे कर भी उस गली के पत्थरों तक ने अपनाया।।
।। सहज ।।
©Sarvesh Sharma Sahaj
#hamariadhurikahani