मन को जो समझ सके, हो ऐसा हमसफ़र तन का रिश्ता हैं बे | हिंदी शायरी Video

"मन को जो समझ सके, हो ऐसा हमसफ़र तन का रिश्ता हैं बेमानी, समझ सको अगर। राम सीता से हमसफ़र विरले ही बन पाते हैं एक दूसरे की समझ से,सुगम बना लें जो डगर। नैन नक्स ,जुल्फों, देह की जो बात न करते, अक्ल, हुनर को जो तरजीह दे, हो ऐसा बशर। मसले सबकी जिंदगी में होते हैं कुछ न कुछ मसलों को निपटा सके, हो कोई ऐसा रहगुजर। ©Kamlesh Kandpal "

मन को जो समझ सके, हो ऐसा हमसफ़र तन का रिश्ता हैं बेमानी, समझ सको अगर। राम सीता से हमसफ़र विरले ही बन पाते हैं एक दूसरे की समझ से,सुगम बना लें जो डगर। नैन नक्स ,जुल्फों, देह की जो बात न करते, अक्ल, हुनर को जो तरजीह दे, हो ऐसा बशर। मसले सबकी जिंदगी में होते हैं कुछ न कुछ मसलों को निपटा सके, हो कोई ऐसा रहगुजर। ©Kamlesh Kandpal

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