बात निकली है खिड़कियों से कहीं
खुला पर्दा है आँधियों से कहीं
रोशनी छिप गयी है बादल में
चाँद को देख कनखियों से कहीं
वो ख़फा होके हँस रहा होगा
प्यार की मीठी झिड़कियों से कहीं
गुल को गुलदस्ते में सजा रखना
मिल ही जायेगा तितलियों से कहीं
है ‘महज़'’ इत्मिनान अब हमको
राज़ निकलेगा ख़ामियों से कहीं
©Mahendra Narayan
#outofsight