White Badi dilkash hai ye Saye bhari tang galiya R | English Poetry

"White Badi dilkash hai ye Saye bhari tang galiya Ravaan hai jisme sard Jal ye hain vo nadiya Rooh ki khali tasveero me Bhar deti hai Sharbati rang galiyan Sheetal shant manohar Shaffak sarovar Khamosh dil ki beshkimti dharohar महकता सा इक आँचल है ख़्वाबों मे कोई जलपरी उतर आई है सपनो के तालाबों मे एक शोला एक बिजली और तकमील मेरी हज़ार नाम लिख दिए है उसके मैंने बंद लिफाफो मे ट्रैन मे सफ़र करते हुए अक्सर ग़ुमाँ होता है इंतेज़ार करतीं हो जैसे वो ही मेहजबीन झील के किनारों मे ये रोशनियो के साये क्यों बारहा एक ही तस्वीर बनाये आखिर किसे तलाशता रहता हूँ रात गए सितारो मे एक अजनबी सी दिलकश आवाज़ पहचानी लगती है क्यों जाने कौन पुकारता है देर शाम कोहसारो मे नब्ज़ नब्ज़ मे करता रहता है इश्क़ रक्स सरकार ने तकिये से चुरा कर जो पढ़े हमारे ख़त फ़िर नाम लिख ही दिया मेरा अपने बीमारो मे ©qais majaz,dark"

 White Badi dilkash hai ye
Saye bhari tang galiya
Ravaan hai jisme sard 
Jal ye hain vo nadiya
Rooh ki khali tasveero me
Bhar deti hai
Sharbati rang galiyan 
Sheetal shant manohar Shaffak sarovar
Khamosh dil ki beshkimti dharohar
महकता सा इक आँचल है ख़्वाबों मे 
कोई जलपरी उतर आई है सपनो के तालाबों मे 
एक शोला एक बिजली और तकमील मेरी 
हज़ार नाम लिख दिए है उसके मैंने बंद लिफाफो मे 
ट्रैन मे सफ़र करते हुए अक्सर ग़ुमाँ होता है 
इंतेज़ार करतीं हो जैसे वो ही मेहजबीन  झील के किनारों मे 
ये रोशनियो के साये क्यों बारहा एक ही तस्वीर बनाये 
आखिर किसे तलाशता रहता हूँ रात गए सितारो मे 
एक अजनबी सी दिलकश आवाज़ पहचानी लगती है क्यों
जाने कौन पुकारता है देर शाम कोहसारो मे 
नब्ज़ नब्ज़ मे करता रहता है इश्क़ रक्स 
सरकार ने तकिये से चुरा कर जो पढ़े हमारे ख़त 
फ़िर नाम लिख ही दिया मेरा अपने बीमारो मे

©qais majaz,dark

White Badi dilkash hai ye Saye bhari tang galiya Ravaan hai jisme sard Jal ye hain vo nadiya Rooh ki khali tasveero me Bhar deti hai Sharbati rang galiyan Sheetal shant manohar Shaffak sarovar Khamosh dil ki beshkimti dharohar महकता सा इक आँचल है ख़्वाबों मे कोई जलपरी उतर आई है सपनो के तालाबों मे एक शोला एक बिजली और तकमील मेरी हज़ार नाम लिख दिए है उसके मैंने बंद लिफाफो मे ट्रैन मे सफ़र करते हुए अक्सर ग़ुमाँ होता है इंतेज़ार करतीं हो जैसे वो ही मेहजबीन झील के किनारों मे ये रोशनियो के साये क्यों बारहा एक ही तस्वीर बनाये आखिर किसे तलाशता रहता हूँ रात गए सितारो मे एक अजनबी सी दिलकश आवाज़ पहचानी लगती है क्यों जाने कौन पुकारता है देर शाम कोहसारो मे नब्ज़ नब्ज़ मे करता रहता है इश्क़ रक्स सरकार ने तकिये से चुरा कर जो पढ़े हमारे ख़त फ़िर नाम लिख ही दिया मेरा अपने बीमारो मे ©qais majaz,dark

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