ज़िंदगी में तुम्हारी ना हो
बेशक़
कोई मक़ाम मेरा
तुम तक ही रहेगा
मुतासिर,ये ईमान मेरा
तुम कोई आम शय तो हो ही नहीं
क्योंकि
मैने माना है,तुम को
अंजाम मेरा
तुम रहो खुश रहो जहां भी रहो
मुझ को काफ़ी है
फ़िर,इतना
इनाम मेरा...
©ashita pandey बेबाक़
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