मैं मंदिर भी छोड़ आया मैं मस्जिद भी छोड़ आया , अब | हिंदी कविता

"मैं मंदिर भी छोड़ आया मैं मस्जिद भी छोड़ आया , अब की बार मैं ईश्वर को अपने दिल में बसा लाया । जमाने के धोको को छोड़ मैं आगे निकल आया । मैं गीता भी छोड़ आया मैं कुरान भी छोड़ आया , मैं जिंदगी का सार अपने आप में ले आया । मैं छोटी -छोटी खुशियों को ले आया , खुद के दुखों को मैं सब उस पर छोड़ आया । एक भरोसा था एक विश्वास था , जो मैं उसके पास से ले आया । ©short sweet"

 मैं मंदिर भी छोड़ आया मैं मस्जिद भी छोड़ आया , अब की बार मैं ईश्वर को अपने दिल में बसा लाया । 

जमाने के धोको को छोड़ मैं  आगे निकल आया ।

मैं गीता भी छोड़ आया मैं कुरान भी छोड़ आया , मैं जिंदगी का सार अपने आप में ले आया ।

मैं छोटी -छोटी खुशियों को ले आया , खुद के दुखों को मैं सब उस पर छोड़ आया । 

एक भरोसा था एक विश्वास था , जो मैं उसके पास से ले आया ।

©short sweet

मैं मंदिर भी छोड़ आया मैं मस्जिद भी छोड़ आया , अब की बार मैं ईश्वर को अपने दिल में बसा लाया । जमाने के धोको को छोड़ मैं आगे निकल आया । मैं गीता भी छोड़ आया मैं कुरान भी छोड़ आया , मैं जिंदगी का सार अपने आप में ले आया । मैं छोटी -छोटी खुशियों को ले आया , खुद के दुखों को मैं सब उस पर छोड़ आया । एक भरोसा था एक विश्वास था , जो मैं उसके पास से ले आया । ©short sweet

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