कड़वा हैं पर सच हैं :
हमारे यहाँ अनपढ़ को मंत्री की कुर्सी
पढे़ लिखो को दर- दर की ठोकर,
कहते हैं जिस देश में हम रहते हैं
वहाँ भले ही इंसान सब अलग अलग धर्म को हो
सब एक हैं
फिर क्यों हर चीज को धर्म - जात के हिसाब से बाँटते हैं
यहाँ तक कि नौकरियाँ भी
जात के हिसाब ( categary) से दी जाती हैं
talent के हिसाब से नहीं,
और ना जाने कितने इंसानों का सौदा किया जाता होगा
किसी इंसान को पूरा करने के लिए ( उसे उसकी पहुँच बनाने के लिए) ,
ना जाने कितनी मासूम जिन्दगी से खिलवाड. होता होगा
और बस फिर कुछ दिन media में चर्चा, कैंडल मार्च
बात खतम,
एक केस के सालों कोर्ट के चक्कर और हासिल कुछ नहीं,
लोग मर हैं गाँव के अस्पताल में सुविधा नहीं,
ना कोई चारा मरीज को अस्पताल पहुंचाने का,
ऐसा लगता है आजादी को कितने भी साल हो जाएं
लोग वही पुरानी सोच की जंजीरों में बंधे हैं
धर्म- जात, छुआछूत, बेटा- बेटी का फर्क
किसी से भी आजाद नहीं हुए हैं।
ना जाने कितने घोटालें करने वाले आराम की जिन्दगी जी रहे हैं।
22/7/24
⏰12:01 p. m.
@ubaidakhatoonS✍️
©Ubaida khatoon Siddiqui
आज का विचार नये अच्छे विचार
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