परिचित हूँ मैं स्वयं से, आओ! आपसे परिचय कराता हूँ।
संध्या की पावन बेला में, मैं मधुर गीत जीवन का गाता हूँ।
राग-द्वेष-बैर-भाव से दूर हो, मैं स्वयं में, मै नहीं रखता हूँ।
है जीवन गंगा की धारा सा, शीतल हो मैं इसमे बहता हूँ।
आओ अब तुम्हें इस दुर्लभ, मानव जीवन की यात्रा कराता हूँ।
पथ अत्यंत कष्टकारी हैं इसके, इन्हें सुलभ करना सिखाता हूँ।
अहम का काँटा ना चुभने पाए कभी, इसका सरल उपचार बताता हूँ।
यदि क्रोध की अग्नि भड़क जाए कभी, तो दीप शांति का जलाता हूँ।
मन आँगन के प्रेमद्वारा में, मैं नित सुमन-परोपकार के चढ़ाता हूँ।
भेदते है मानवों के शब्दों के तीर कभी-कभी, मेरे कर्णोद्वार को भी,
परंतु मैं इनके आघात से, तनिक भी विचलित हो नहीं ड़गमगाता हूँ।
विपरित परिस्थितियों में भी मैं स्वयं का,संयम नहीं भुलाता हूँ।
हो चाहे मेघ आपत्तियों के घनेरे, मैं आनंद की वर्षा में नहाता हूँ।
परिचित हूँ मैं स्वयं से, आओ! आपसे परिचय कराता हूँ।
संध्या की पावन बेला में, मैं मधुर गीत जीवन का गाता हूँ।
©Motivational writter
जीवन बहुत अनमोल है...इसे यूं ही मत खोना...❤️🌹🌹❤️✌️🙏
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