अब भी जान बात हुआ करती है
आखों की अश्कों से मुलाकात हुआ करती है,
अरसा हो गया मुझे तुझे बिछड़े हुए
पर अभी तक तेरी तस्वीर से मेरी बात हुआ करती है,
जब भी किसी सफर पर निकलता हूं
अब तन्हाइयां भी साथ हुआ करती है,
अब जब जब मेरी आखों में सावन आता है
तब तब मेरी कलम से तेरे शब की बरसात हुआ करती है
तब तब मेरे शहर में बरसात हुआ करती है,
और, जल गई थी एक रोज ख्वाब में आखें मेरी
अब तो सिर्फ इन आखों में उस ख़्वाब की राख हुआ करती है
सुना है तुझे भी पसंद है लिखावट मेरी
क्या बताऊं तुझे की मेरी लिखावट की भी एक वजह तुझसे होकर गुजरती है
©Àman Singh Solanki