माँ मत भेजा करो ना यूँ दूर मुझे खुद से
एक बार तो पलट कर मुझे देखा करो
नहीं अच्छा लगता मुझे कुछ भी मेरे घर से दूर
ये बात थोड़ा समझा करो
दर्द हैं तकलीफ हैं मुझे पता तो हैं ना तुम्हें
बचपन की तरह मेहफूज आँचल में मुझे रखा करो।
नहीं झलकते आँसु अब आँखों से मेरी
मैं कहूं या नहीं मेरे चेहरे से मेरी उदासी
पढ़ा करो।
मत सिखाओ ये बार बार दुनिया दारी मुझे
मेरे बचपने को अब इतना भी बड़प्पन में ना बदला करो
#माँ