शोर के बाजार में खामोशी बेचने निकला है
नकाब पहन लुटेरा घर को लूटने निकला है
आज़ाद हो सर्कस का बूढ़ा शेर आज कैसे
मालिक को मोहब्बत से खरोचने निकला है
पहचान गए है शहर में शिकारी को सभी
नए शहर नया शिकार दबोचने निकला है
जुबान को भाने लगा है नए मांस का स्वाद
अब इंसान ही इंसान को नोचने निकला है
नए शेर अब भी लिखे जा रहे ज़िंदगी पर
एक समझदार ज़िंदगी समझने निकला है
©AK Singh
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