सर्द रातें और चाय सुना रहा हूँ एक कहानी इश्क़ की, बोलो सुनोगी क्या,
बिछड़ी थी जो मुस्कान मेरी, तुम बनोगी क्या ।
चले आये बड़ी ही दूर बड़ा सा फ़ासला बन भी गया,
कहीं टूटा था जो रिश्ता मेरा, तुम नया बुनोगी क्या ।
हमें मालूम है तुमको भी चाय कि चाहत वही है,
जो हम लायेंगे दो प्याले तो बोलो हाँ, कहोगी क्या ।
तुम्हारे साथ बैठ पूरी रात बातें करते ही रहेंगे,
जो प्याला हो गया ख़ाली तो तुम, फिर भरोगी क्या ।
चलते रहेंगे साथ दोनों इस नये सफ़र पर,
ग़र कहीं हम खो गये तो , हमें खोजोगी क्या ।
अगर जो आख़िरी मंजर है ये तो हाथ हाथों में ही चाहूँ,
कहीं जो मौत तक चलने कहूँ मैं, कहों ना चलोगी क्या ।
-कृष्णामरेश
©Amresh Krishna
#chai