तारे ज़रा सी रात ढल जाए तो शायद नींद आ जाए,
ज़रा सा दिल बहल जाए तो शायद नींद आ जाए...
अभी तो बे-चैनियाँ हैं बे-क़रारी हैं
तबीअ'त कुछ सँभल जाए तो शायद नींद आ जाए
हवा के नर्म झोंकों ने जगाया उनकी यादों को
हवा का रुख़ बदल जाए तो शायद नींद आ जाए
ये तूफ़ाँ आँसुओं का जो उमड आया है पलकों तक मेरे,
किसी सूरत ये टल जाए तो शायद नींद आ जाए
ये हँसता-मुस्कुराता क़ाफ़िला जो चाँद-तारों का,
'राज़' आगे निकल जाए तो शायद नींद आ जाए....!
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©KumaR Kishan
#अनकहा_सा