जीवन के झंझावातों से निकल मैं चाहू सामीप्य प्रकृत | हिंदी लव

"जीवन के झंझावातों से निकल मैं चाहू सामीप्य प्रकृति का देख प्रकृति की अनुपम छटा आज उर आनंदित है मेरा निःस्तब्ध निशा में प्रकृति भी है कुछ अलसायी हुई विरह वेदना से आकुल हो लगती कुछ मुरझाई हुई। मेरे शब्द ©Seema Rani"

 जीवन के झंझावातों से निकल
मैं चाहू सामीप्य  प्रकृति का
देख प्रकृति की अनुपम छटा
आज उर आनंदित है मेरा
निःस्तब्ध निशा में प्रकृति भी
है कुछ अलसायी हुई
विरह वेदना से आकुल हो
लगती कुछ मुरझाई हुई।
मेरे शब्द

©Seema Rani

जीवन के झंझावातों से निकल मैं चाहू सामीप्य प्रकृति का देख प्रकृति की अनुपम छटा आज उर आनंदित है मेरा निःस्तब्ध निशा में प्रकृति भी है कुछ अलसायी हुई विरह वेदना से आकुल हो लगती कुछ मुरझाई हुई। मेरे शब्द ©Seema Rani

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