आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा 2
फिर से पावस का बदरा नयनों में उमड़ते देखा है |
विरहातुर उर को फिर से पीड़ा से लड़ते देखा है |
सारे तप और दुआ प्रार्थना विफल हुई हम बिछड़े ज्यों,
आज भी फिर से नींद को यूँ आँखों से बिछड़ते देखा है ||
शिवम् सिंह सिसौदिया