बात भी सही थी, कैसे रुकता शाम? नजरें कमजोर थी उसकी | हिंदी कविता Video

"बात भी सही थी, कैसे रुकता शाम? नजरें कमजोर थी उसकी और अंधेरा होने वाला था। उसने आखरी बार पीछे मुड़कर देखा, एक सुबह थी जो दिन के इंतजार में जवां हो रही थी, और शाम? उसके सामने के पगडंडी पे अब रात ने चादर बिछानी शुरू कर दी थी। नजरें झुकाए मिट्टी को ताकता हुआ 'शाम' फिर आगे बढ़ गया और नन्हीं सुबह अभी भी पानी कि लहरों से खेल रही थी। #दो_पहर जीवन के ©Anupam Kumar"

बात भी सही थी, कैसे रुकता शाम? नजरें कमजोर थी उसकी और अंधेरा होने वाला था। उसने आखरी बार पीछे मुड़कर देखा, एक सुबह थी जो दिन के इंतजार में जवां हो रही थी, और शाम? उसके सामने के पगडंडी पे अब रात ने चादर बिछानी शुरू कर दी थी। नजरें झुकाए मिट्टी को ताकता हुआ 'शाम' फिर आगे बढ़ गया और नन्हीं सुबह अभी भी पानी कि लहरों से खेल रही थी। #दो_पहर जीवन के ©Anupam Kumar

#poetryunplugged #दो_पहर

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