"लेखक की कल्पना"
लिखना कोई आसान काम नहीं है,
ये तो उस परमात्मा का दिया गुण है,
लेखक को 'लेखक' उसका आत्म- विश्वास और कल्पना बनाती है,
इन दो चीजों के ज़रिए लेखक ज़मीन से आसमान तक पहुंचने की ताकत रखता है,
लेखक चाहे घर पर हो या कहीं बाहर वो लिख सकता है,
परंतु उसको एकांत स्थान की जरुरत होती है,
अपने शब्दों के ज़रिए लेखक किसी को भी खुश, नराज, दुःखी, कील आदि सकता है,
इसके लिए लेखक को किसी चाकू, खंजर इत्यादि की ज़रूरत नहीं पड़ती,
शब्द ही उसकी एकमात्र पहचान होती है,
किस शब्द को कहां इस्तेमाल करना है,
ये लेखक को उसकी बुद्धि बताती है,
और लेखक को क्या सोचना है,
ये उसे उसकी 'काल्पनिक शक्ति' बताती है,
अक्सर लेखक जो महसूस करता है,
वही वो लिखता है,
परंतु कुछ ऐसे दृश्य,बातें आदि होते है,
जो लेखक सिर्फ अपनी काल्पनिक शक्ति से लिख सकता है,
अगर लेखक रोज़ कुछ ना कुछ नया पढ़े तो वो अपनी खामियों को सुधार सकता है,
जैसे अध्यापक के लिए रोज़ पढ़ाना ज़रूरी होता है,
उसी प्रकार लेखक के लिए भी रोज़ लिखना ज़रूरी होता है,
लेखक अपनी काल्पनिक शक्ति की मदद से शब्दों का ऐसा जाल बुनते हैं,
कि पढ़ते ही जुबान से खुद ही 'वाह क्या खूब' लिखा है आ जाता है..!!
कुछ खास लिखता नहीं,
बस दिल की गहराइयों को शब्दों के ज़रिए उतारा गया है,
मैं शायर तो नहीं,
बस मुझे "शायर" बताया गया है...!!!!!
✍️अनमोल✍🏻
©anmolchugh8383
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