हसरत थी बहुत कुछ पाने कि
तो बखूबी फिक्रों से लड़ते गए
और यूं ही पतंग बन उड़ते गए
गए कभी ऊपर तो कभी नीचे आए
लिए सहारा उंगलियों में फसी उस
कच्ची डोर से जो बेबस थी वहा
पर कहना चाहती थी बहुत कुछ मुझसे
और इसी जुस्तजू में दिन गुजरते गए।
©Naresh Bhardwaj
#makarsakranti