जुदा होकर भी वो मुझे तड़पाती है, ख़्वाबों में आकर | हिंदी Shayari

"जुदा होकर भी वो मुझे तड़पाती है, ख़्वाबों में आकर बेचैनियाँ मेरी बढ़ाती है; कितने सुकून से कट रहे थे दिन मेरे, फिर से आकर आग वो लगाती है...."

 जुदा होकर भी वो मुझे तड़पाती है,
ख़्वाबों में आकर बेचैनियाँ मेरी बढ़ाती है;
कितने सुकून से कट रहे थे दिन मेरे,
फिर से आकर आग वो लगाती है....

जुदा होकर भी वो मुझे तड़पाती है, ख़्वाबों में आकर बेचैनियाँ मेरी बढ़ाती है; कितने सुकून से कट रहे थे दिन मेरे, फिर से आकर आग वो लगाती है....

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