एक और ग़ज़ल✍पेश है आपकी खिदमत में..
!!..मैं आज लिखता हूँ..!!
चले थे जिस राह पर खुशहाल होकर,
सफर उस राह की मैं आज लिखता हूँ।।
दिया था एक गुलाब हाथों में उसके,
कुचलने की आह को मैं आज लिखता हूँ।।
किये थे कुछ वादे हमने एक-दूजे से,
टूटने की आवाज को मैं आज लिखता हूँ।।
ख़्वाब थे बहुत उसके चक्षुओं मे मेरे,
बिखरते हुए मोतियों को मैं आज लिखता हूँ।।
रहते थे जो साथ हर पल हमारे,
उनके आहट की डर को मैं आज लिखता हूँ।।
सही था सबकुछ जिंदगी में अपने,
मरी हुई कहानी को मैं आज लिखता हूँ।।
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