कि मेरे ज़ख्म ही थोड़े बहुत खुरेदे है
मिरी तन्हाइ मुझे काट कर नहीं खाती
©Phalak Rakesh
नहीं है ये कि कभी लाज बर नहीं आती
मगर हा वो फिर भी अपने घर नहीं जाती
कि मेरे ज़ख्म ही थोड़े बहुत खुरेदे है
मिरी तन्हाइ मुझे काट कर नहीं खाती
तमाम नुस्खे मै ने आज़मा के देखे हैं
खुली हवा में भी ये साँस पर नहीं आती