खुल के कह दूं कोई बात, तो बुरी हूं कुछ ना बोलूं, त
"खुल के कह दूं कोई बात, तो बुरी हूं
कुछ ना बोलूं, तो घमंडी हूं
बिना कुछ कहे सिर्फ़ सुनती जाऊं, तो संस्कारी हूं
कभी बयां कर दूं दिली ख़्वाहिश, तो उदंड हूं
सीख रही हूं मैं अब
नाप तोल कर बोलना
पर क्या करूं
आख़िर में मैं भी तो
इंसान ही हूं।
-induprabha"
खुल के कह दूं कोई बात, तो बुरी हूं
कुछ ना बोलूं, तो घमंडी हूं
बिना कुछ कहे सिर्फ़ सुनती जाऊं, तो संस्कारी हूं
कभी बयां कर दूं दिली ख़्वाहिश, तो उदंड हूं
सीख रही हूं मैं अब
नाप तोल कर बोलना
पर क्या करूं
आख़िर में मैं भी तो
इंसान ही हूं।
-induprabha