खारा मन
मिठास घोलते हुवे सबके जीवन में क्या पाती है वो सिर्फ और सिर्फ एक खारा मन'''
खुद को चूल्हे में झोंक देने के बाद क्या मिलता है ।।
सिर्फ एक अद्रश्य जख्म
जिस जख्म पर चढता रह्ता है परत दर परत नमक
नही रोक पाती है अपने मधुर मन को खारा होने से
बहा कर खारा पानी आँखो से मन हल्का कर लेती है
घोलने के लिये मिठास सबके जीवन में हमेशा तत्पर रह्ती है।
खाती है जिस घर का नमक कर्ज वो कुछ एसे चुकाती है
फर्ज सारे निभाते 'निभाते खुद के मधुर मन को ही खारा कर जाती है।।।
मोल उसका कोई चुकाएगा कैसे
उसके नमक का कर्ज कोई उतारेगा केसे???
©Garima Shukla
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