"#dilkejazbaat
कुछ अनजान रास्ते,अपने से लगते हैं।
अंधेरे में भी ये रोशनी जुगनू सी लागती है।।
नज़रिए कई हैं, कुछ पसंद है कुछ नापसंद।
और इन सब से जुदा है कुछ
वो कुछ का पता न इन रास्तों को है
और न उन मुसाफिरों को जो इन रास्तों से है गुज़रे।
~ पारुल ~
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