साँझ को बुझे हुए चिरागों तले,
कौन देता साथ मेरा यूँ ही भले।
डुबी हुई बाती कोई नही साथी,
बिन सहारे बैठा अकेले अकेले।
जलता हुवा दिया जब बुझ बुझाता,
बस चांदनी के साथ अपनी नजरें मिलाता।।
नजरे मिलाते मिलाते सुबह हो जाती,
शर्माकर चांदनी भी अब सो जाती।
पंछी जोर शोर से विभाभोर कर जाती,
और सूरज की किरण पड़े इसकदर,
प्रभा ढलते ढलते उसी का हो जाती।
कृष्ण रात्रि जब आ जाती,
आँख मिलाने ये चांदनी न आती,
तारे तो फिर भी साथ मे रहते,
मगर चांदनी रात की याद सताती,
फिर बुझे हुए चिरागों की बाती,
मुझे अपनी साथ बुलाती।।
--Deepak Khansuli--
#Dreams