झूम के मन मेरा,भीग रहा है,रिमझिम सावन में।
तुम तुलसी जैसे सजने लगी हो,दिल के आंगन में।
मन हो पपीहा गीत सुनाए,कोई मधुर घुन जैसी।
पांव के पायल जैसे बजते,कानो में रुनझुन जैसी।
कोयल जैसे बोल रही हो,आम के मेरे बागन में।
तुम तुलसी जैसे सजने लगी हो,दिल के आंगन में।
बन के बाँसुरिया मोहन की,छेड रही हो तान कोई।
मंगा रहा हो तड़प के जैसे,रब से अपनी जान कोई।
दिल ये हमारा बिन तेरे अब,लगता अभागन में।
तुम तुलसी जैसे सजने लगी हो,दिल के आंगन में।
डोर ये कैसी बांध दिया रब,तुहि लगे है मेरा तो सब।
कोई किसी का होता होगा,मेरा तो रब भी तू है अब।
दिल झोली ले हाथ पसारे,खड़ा हुआ है ये मांगन में।
तुम तुलसी जैसे सजने लगी हो,दिल के आंगन में।
©Anand singh बबुआन