मरते थे हम जिन पर जाने क्यूँ वो ख़फ़ा हो गए। कल ब | हिंदी शायरी

"मरते थे हम जिन पर जाने क्यूँ वो ख़फ़ा हो गए। कल बहते थे जो साँस बनकर इस सीने में....... आज फ़क़त इक हवा हो गए।। ©AB Sharma"

 मरते थे हम जिन पर 
जाने क्यूँ वो ख़फ़ा हो गए।
कल बहते थे जो साँस बनकर
इस सीने में.......
आज फ़क़त इक हवा हो गए।।

©AB Sharma

मरते थे हम जिन पर जाने क्यूँ वो ख़फ़ा हो गए। कल बहते थे जो साँस बनकर इस सीने में....... आज फ़क़त इक हवा हो गए।। ©AB Sharma

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