दौड़ी भागी पास नदी के, कोशिश थी कि प्यास बुझे! | हिंदी कविता

"दौड़ी भागी पास नदी के, कोशिश थी कि प्यास बुझे! गर्दन ही सूज गया था उसका, पेट का कैसे आग बूझे? -Amartya Dhanak Sfulingodgaar"

 दौड़ी भागी पास नदी के, 
कोशिश थी कि प्यास बुझे! 
गर्दन ही सूज गया था उसका, 
पेट का कैसे आग बूझे?
-Amartya Dhanak Sfulingodgaar

दौड़ी भागी पास नदी के, कोशिश थी कि प्यास बुझे! गर्दन ही सूज गया था उसका, पेट का कैसे आग बूझे? -Amartya Dhanak Sfulingodgaar

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